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Yasmin (1955)

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  • LanguageHindi
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रेगिस्तान की तपती हुई रेत के टोलों में कोई फूल भी खिल सकता है?

हुस्न के साँचे में ढली हुई यास्मिन की जवानी इस बात का जवाब थी। उसकी आवाज में जादू था। अदाओं में सहर और इशारों में झंकार... ... ...

"अदा से नाज से अबरु के इक इशारे से
दिलों में इश्क का जादू जगाने आई हूँ"

अहमद ने उसे देखा तो इश्क का जादू सचमूच ही जाग उठा। और वह बेचैन हो गया।

"बेचैन नज़र बेताब जिगर ये दिल है किसी का दीवाना
कब शाम हो और वह शमा जले कब उड़ कर पहुँचे परवाना"

परवाने तो बेकरार हुआ ही करते हैं, मगर शमा के दिल की क़ैफ़ियत भी डाँवाँडोल हो गयी। अहमद के हसीन तस्सवर ने यास्मिन के ख्यालात भी रंगीन बना डाले, और इसी रंग में झूमते हुए उसका धड़कता हुआ दिल गुनगुनाने लगा

"आँखों में समा जाओ इस दिल में रहा करना
तारों में हँसा करना फ़ूलों में खिला करना"

प्यार की वादी में अहमद और यास्मिन का पहला ही कदम था कि कयामत भी आ गयी! इन मुलाकातों का राज़ यास्मिन के बाप और उसके मँगेतर जाफ़र पर भी खुल गया। और देखते ही देखते मुहब्बत की हसीन राहों में काँटे बिछा दिये गये।

यास्मिन की दुनिया वीरान हो गयी। उन्हीं खंडरात की चार दीवारों में जहाँ उसकी मुहब्बत ने जन्म लिया था वह अपने महबूब से बिछड़ जाने का गिला करती रह गयी।

"अब वो रातें कहाँ अब दो बातें कहाँ
वो मेरे प्यार की चाँदनी लुट गयी"!

इधर अहमद के दिल में यास्मिन के बारे में जाफ़र ने बदगुमानी का ऐसा बीज बो दिया था कि अहमद यास्मिन की जान का दुश्मन हो गया, और उधर बेचारी यास्मिन अपने महबूब की तलाश में गली कुचों में गाती फिरती थी

"दिल उनको ढूँढता है हम दिल को ढूँढते है
भटके हुए मुसाफिर मंजिल को ढूँढते हैं"।

इस जज़बे को देख कर यास्मिन के के बाप ने बड़ी चालाकी से उसे ये यकीन दिला दिया कि वो अहमद के साथ उसकी शादी कर देगा और तामशाइयों के हुजूम ने आज उसे क़हवा खाने में सरमस्त गाते देखा... ... ...

"हँस हँस के हसीनों से नजर चार किये जा
जो भी करे प्यार उसे प्यार किये जा"

और जब क़हवा खाने की फ़िजा राग रंग में पूरी तरह झूम रही थी, अहमद ग़म और ग़ुस्से की आग में तमतमाता हुआ वहाँ आया और यास्मिन को अपने घोड़े पर ले भागा। मुहब्बत की इस दास्तान का अब एक अजीब दौर शुरू हुआ! अपने ही महबूब के हाथों यास्मिन एक लौंडी की तरह अहमद के इन्तक़ाम का शिकार हो रही थी, और आँसू बहा रही थी।

"मूझ पे इल्जामे बेवफ़ाई है, ऐ मुहब्बत तेरी दुहाई है।"

उसकी मुहब्बत अब भी सच्ची थी। उसका जज़बा अब भी पाकीज़ा था। मगर अहमद के दिल को यक़ीन दिलाने में उसकी हर कोशिश नाकाम हुई और उस के दिल से बददुआ निकली

"बचैन करने वाले तू भी न चैन पाये
तेरी ही बेवफ़ाई तुझ को लहू रुलाये"

और सचमुच ही उसकी फ़रियाद अहमद के दिल को मोम बनाने में कामयाब हो गयी! मगर इससे पहले के अहमद अपने खेमें में पहुँचे यास्मिन जा चुकी थी! मुहब्बत के जोश में अहमद का दिल रो उठा!

"तुम अपनी याद भी दिल से भूला जाते तो अच्छा था
यह दो आँसू लगी दिल की बुझा जाते तो अच्छा था"

मगर यास्मिन अब फिर से अपने जालिम हमराहियों के चंगुल में जा फँसी थी! उसका दिल बुझ चुका था! शोखियाँ जवाब दे चुकी थी, और उसके हँसते हुए नगमे उदासी में दफ़न हो गये थे!

"मुहब्बत में पहला क़दम रखने वालो, क़दम जो उठाना सँभल के उठाना।
यह रस्ता कठिन है यह मंजिल है भारी, किसी की तरह तुम भी ठोकर न खाना।"

क़हवा खाने के नसीब फिर से जाग उठे थे। उदास फ़िजाओं में फिर से तरन्नम छा गया था। और अहमद की यास्मिन पर तमाशाइयों के दिल फिर से निसार होने लगे थे कि एक तूफ़ान आया एक बिजली कौंदी और मुहब्बत की इस दास्तान की गूँज आसमान की बुलन्यिों तक जा पहुँची।

                                                                                                                                                                                                                                      -जगदीश कँवल

(From the official press booklet)

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